स्वतंत्र रचना
दिनांक: १३.०२.२०२०
वार: गुरुवार
विषय: प्रेम
विधा: दोहा
छन्द: मात्रिक
शीर्षक: तरस रही आंखें सजन
मादकता नवयौवना, उफन रही है प्यार।
गोरी खोयी आश में ,प्रीत मिलन उपहार।।१।।
महक रहा तन मन वदन,कुसमित पा मधुमास।
लाल गुलाबी होंठ नित ,आस्वादन अभिलास।।२।।
आलिंगन अभिलाष प्रिय, अलिगुंजन नवप्रीत।
कोस रही ऋतुराज को , कहां छिपा मन मीत।।३।।
नदी किनारे पनघटी , रख सजनी रत सोच ।
कब आएगा बालमां , मिलूं सजन संकोच।।४।।
तरस रहीं आंखें सजन, दरश रूप अभिराम।
अश्क वक्ष भींगे सजन, निशिवासर रतिकाम।।५।।
माला गूंथी प्रीत की , सजन मिलन गलहार।
क्या गलती मुझसे बलम, तड़प रही अभिसार।।६।।
ख्वाबों की बन मल्लिका , लुटे सभी सुख चैन।
तन मन धन अर्पण तुझे , बरस रही नित नैन।।७।।
छोड़े सब रिश्ते यहां , चली सजन मन प्रीत।
सरगम बन मैं साज़ना , गाऊं मधुरिम गीत।।८।।
अमर प्रेम नवलेख से , करूं काव्य शृंगार।
विलसित मन प्रेमी युगल , दूं निकुंज उपहार।।९।।
कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" नयी दिल्ली
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