कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली

दिनांक: २४.०२.२०२०
वार: सोमवार
विधा: गीत
विषय: नीर
शीर्षक: मैं आंखों का नीर हूं
मैं आंखों का नीर हूं,
मैं जीवन का सार हूं,
नित अविरल निर्मल बहता जल,
ममता मधुरिम प्रीत बहार हूं।
अश्क नैन बनकर निर्झर मैं
प्रीत मिलन इज़हार हूं,
विरह राग अनुराग बिम्ब बन ,
साजन मन उपहार  हूं। 
हरित भरित वसुधा कर सिञ्चित,
काली घटा जलधार हूं।
नीर नैन रसधार सुधा बन,
ग़म खुशियों का एतवार हूं,
जीवन हूं मनमीत बना मैं ,
तन जीवन संचार हूं।
नीर नयन मां पूत प्यार का,
बन गंगा पावन  स्नान हूं। 
भींगी पलकें  नीर नैन से ,
चाह मनौती मनहार हूं,
निश्चल नित अन्तस्तल भावित
स्नेहिल अपनापन साथ हूं।
रागी मैं अनुरागी हम दिल,
कशिश इश्क अहसास हूं ,
नीर बना मैं दुख का बदला, 
मानवता  आधार हूं।
बच्चों की आंखों का मोती ,
इच्छापूरक  हथियार हूं,
वशीकरण प्रियतम भावुक मन ,
नीर चक्षु बन करुणाकर अवतार हूं। 
मिलन प्रीत अरमान बना मैं ,
कामुकता  प्रतीकार हूं , 
विरहानल तपती ज्वाला रति ,
प्रिय कामदेव  अभिसार हूं।
परिधानों से सजी अलंकृत,
नैन अश्क कजरार हूं ,
मादक मैं मोती की बूंदे ,
उर त्रिवली का जलधार हूं।
भींगी कंचुकी मिलन आस में ,
नित चारु  हृदय  उद्गार  हूं , 
मानक हूं मनमीत प्रेम का ,
धवल  चन्द्र    शृंगार हूं। 
नीर क्षीर सागर सरिता जल,
पय तोय उदक जीवन समझो,
सप्त सरित् का पूत सलिल मैं , 
बह श्रान्त क्लान्त सुखसार  हूं । 
माध्यम नित पीड़ित अवसीदित, 
मझधार  नीर पतवार हूं।
खुशियों का मुस्कान बना मैं ,
माध्यम प्रकटन प्रतिहार हूं। 
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


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