कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली

दिनांक: २०.०२.२०२०
वार: गुरुवार
विधा: दोहा
छन्द: मात्रिक
विषय: मर्यादा
शीर्षक: जीओ मर्यादित विनत
झंझावातों    से     सजा , है   जीवन    संसार।
रखो   धैर्य  बन   साहसी , आए    प्रीत  बहार।।१।।
सदा चलो तुम नेक पथ , रखो   स्वयं  विश्वास।
अंत  मिलेगी सफलता , मधुरिम सच  आभास।।२।।
आएंगी    चोटें    ज़ख़्म , टूटोगे      सौ   बार।
पर  मानो   न    हार  तुम , बनें   रहो   खुद्दार।।३।।
मर्यादा    तोड़ो   नहीं ,  जो   जीवन   आचार।
चलो  सत्य   परहित मना , राष्ट्र धर्म   आधार।।४।।
वारिश   होंगी लांछना , डगमग  होंगे  लक्ष्य।
दुख  विषाद  ढाए कहर , किन्तु सत्य  संरक्ष्य।।५।।
राम  राज्य  परिकल्पना , सत्य न्याय सम्मान ।
त्याग शील  गुण कर्म  में , मर्यादा  रख  ध्यान।।६।।
शान्ति  प्रेम   सद्भावना ,मर्यादित  अभिव्यक्ति।
हो समाज  या  राष्ट्र हित , बनती जीवन शक्ति।।७।।
जीओ  मर्यादित  विनत , रहो  वतन  के साथ।
करो   समादर  आपसी ,  सहयोगी  हो   हाथ।।८।।
मर्यादित  हो  आचरण , हो  मर्यादा     क्रान्ति।
आहत न  पर  भावना , मत   फैलाएं   भ्रान्ति।।९।।
बन निर्माणक राष्ट्र का,हों जन गण सुखधाम।
मर्यादित   निरपेक्ष  नर , हो  पुरुषोत्तम   राम।।१०।।
मर्यादित  जीवन  सफल , राम चरित  सद्भाव।
जाति धर्म  भाषा वतन ,  मत  बांटो  दे  घाव।।११।।
तोड़ो मत इस देश को , रच  न  शाहीन  बाग।
साथ चलो मिलकर वतन , लोकतंत्र अनुराग।।१२।।
मर्यादित    सम्बन्ध  हो , चाहे   देश  समाज।
निर्मल मन भारत चमन , रामराज्य  आगाज़।।१३।।
मर्यादित  हो  लेखिनी , प्रेरक   युवजन  चित्त।
बनें  आईना प्रगति का , प्रीति अमन  आवृत्त।।१४।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


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