कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली

स्वतंत्र रचना सं. २७८
दिनांकः २९.०२.२०२०
वारः शनिवार
विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः होली दे संदेश
माघ फाग अहसास बन, आयी मादक संग।
पर खूनों की होलिका , की   होली   बदरंग।।१।।
नफ़रत की पिचकारियाँ , भर खूनों का  रंग। 
छायी  दहशत  की  नशा , मार काट  हुरदंग।।२।।
घर दूकान वाहन  सब , चढ़े होलिका   भेंट।  
जले ज्वाल दंगा अनल,स्कूली परिणय सेट।।३।।
बैठ  होलिका  गोद  में , प्रेम  शान्ति प्रह्लाद।
जली  आग  इन्सानियत,निर्ममता अवसाद।।४।.
हालाहल  दुर्भाव  में , जलता  देश  समाज।
मिली कपट हिंसा घृणा,भांग फाग आगाज।।५।।
आतंकी साजीश सच,हिरण्यकशिपु अनेक।
घोल  रहे  हिंसक बने , घृणा  रंग  अतिरेक।।६
बन गुलेल पिचकारियाँ , पत्थर  रंग  फुहार। 
बने शस्त्र  पेट्रोल  बम , मौत  फाग उपहार।।७।।
मिटी फाग सारी खुशी, खोकर अपने लोग।
छा मातम जन मन वतन,फँसे नफ़रती रोग।।८।।
नग्न नृत्य जब मौत की , तब चेती सरकार।
छूट मिली  रक्षक  वतन , रोक  थाम गद्दार।।९।।
अपनों को खोकर मनुज,शोकाकुल है मौन। 
है  प्रश्न मानस  निकुंज , सोचो  दोषी  कौन।।१०।।
बने मीत हम प्रीत फिर ,भरे घृणा मन खाई।
रहे शान्ति एका वतन , हम  सब भाई भाई।।११।।
आओ मिल मन्नत करें , जले होलिका द्वेष।
प्रीत नीति बन फागुनी , होली   दे  संदेश।।१२।।
भूलें हम सब गम सितम,बढ़े पुन: नव जोश।
रंगे   रंग उत्थान  पथ , रह जाग्रत नित होश।।१३।।
नवजीवन नवरंग बन ,अधर सुखद मुस्कान।
बिना भेद सबकी प्रगति, हो सबको सम्मान।।१४।।
सर्व   धर्म   सद्भावना  , होली   हो   त्यौहार।
फिर निकुंज आहत चमन,सजे प्रीति शृङ्गार।।१५।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


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