स्वतंत्र रचना सं. २६७
दिनांक: १४.०२.२०२०
वार: शुक्रवार
विधा: दोहा
छन्द: मात्रिक
शीर्षक: ,💋हठ करती प्रिय राधिका💌
लिये हाथ बांसुरिया , कृष्ण चन्द्र मुस्कान।
हठ करती प्रिय राधिका , श्रवण बांसुरी तान।।१।।
सुन राधे धीरज धरो , खाऊं मैं नवनीत।
चलें पुन: मधुवाटिका , सुन मुरली संगीत।।२।।
मातु यशोदा हैं खड़ी , हाथ लिये नवनीत।
हठ मत कर राधे प्रिये , देखो ममता प्रीत।।३।।
पिता नंद आशीष लूं , गैया करूं प्रणाम।
ग्वाल बाल सब साथ लूं , प्रिय राधे अभिराम।।४।।
दाऊ खड़े हैं देखते , कुछ तो कर संकोच।
उतावली मत बन प्रिये , कुछ मेरी भी सोच।।५।।
बड़ी बावली चंचला , तू राधे प्रिय श्याम।
राग न कर अनुराग मन , मुरलीधर तू वाम।।६।।
सुन लाला मैं तो चली , छोड़ तुझे निज गेह।
चाल तेरी मैं समझती , तू नटखट हूं हेय।।७।।
लाख बहाने कर रहे , है तेरे दिल में खोट।
रे कान्हा मुरली बजा , करो न सजनी चोट।।८।।
तू प्रियतम मैं चन्द्रिका , तू मुरली मैं तान।
यमुनाजी के तट चलें , गाएं मधुरिम गान।।९।।
नंदलाल गोपाल सुन, श्याम सलोने मीत ।
दीवानी मुरली मधुर , तू जीवन मैं प्रीत।।१०।।
बनी रागिनी फिर रही , दामोदर हिय ध्यान।
कमलनैन कान्हा प्रियम , रखो प्रीत सम्मान।।११।।
ग्वाल बाल सह गोपियां , उड़ा रहे उपहास।
लाल हो रही लाज से , तनिक करो आभास।।१२।।
मनमोहन चल साथ में , करें मनोहर रास।
लखि निकुंज जीवन सफल,राधा कृष्ण विलास।।१३।।
रुष्ट हुई लखि राधिका , मन हर्षित घन श्याम।
सुन राधे मुरली मधुर , प्राणप्रिये ! सुखधाम।।१४।।
कवि✍️ डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली
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