रचना सं. : २७२
दिनांक: २१.०२.२०२०
वार: शुक्रवार
विधा: दोहा
छन्द : मात्रिक
शीर्षक: 🙏 द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तुति🙏
सोमनाथ सौराष्ट्र में , करुणाकर अवतार।
चारु चन्द्र धर शिखर शिव , गंगाधर संसार।।१।।
उच्च शिखर श्रीशैल पर , प्रमुदित देव निवास।
बाघम्बर मल्लिकार्जुन , पूजन पति कैलाश।।२।।
अकालमृत्यु रक्षक प्रभु , मोक्ष प्रदाता सन्त।
महाकाल उज्जैन में , महिमा नमन अनंत।।३।।
कावेरी नर्मद मिलन , पावन निर्मल धार।
ओंकारेश्वर शिव करे , भवसागर से पार।।४।।
चिताभूमि पूर्वोत्तरी , सदा वास गिरिजेश।
देवासुर पूजित मनुज , बैद्यनाथ परमेश।।५।।
आभूषण सज्जित प्रभु , दक्षिण क्षेत्र सदंग।
भक्ति मुक्ति दाता स्वयं , नागेश्वर अर्धाङ्ग।।६।।
बसे सदा केदार तट , नीलकंठ केदार।
मुनि देवासुर यक्ष अहि , पूजित शिव संसार।।७।।
दर्शन दे पातक हरे , सह्यशिखर उत्तुंग।
बसे त्र्यम्बकेश्वर प्रभु ,मानस शिव जय गुंज।।८।।
सेतु बना निज बाण से , उच्छल जलधि तरंग।
रामेश्वर शिव स्थापना , राम भक्ति नवरंग।।९।।
भूत प्रेत सेवित सदा , नमन करूं करुणेश।
डाकशाकिनी वृन्द में , भीमशंकर जटेश।।१०।।
विश्वनाथ शरणं व्रज , काशीपति भगवान।
हरो पाप पातक मनुज, शरणागत वरदान।।११।।
ज्योतिर्मय भगवान् प्रभु , इलापुरी रनिवास।
घृष्णेश्वर समुदार शिव, करूं नमन उपवास।।१२।।
पूजन विधि पूर्वक करूं,धतुर भांग बेलपत्र।
थाल सजा शिव आरती , गाऊं मंगल मंत्र।।१३।।
कर ताण्डव विकराल बन,धर त्रिशूल अरि नाश।
द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग शिव , त्रिपुरारी जन आश।।१४।।
सत्य शिवम नित सुन्दरम् , सुखमय हो संसार।
महाकाल गौरीश तव , महिमा अपरम्पार।।१५।।
फिर सीता आहत विकल ,कलि रावण दुष्कर्म।
रक्षण कर शिव द्रौपदी , सती लाज रख धर्म।।१६।।
संकट में मां भारती , क्लेशित निज गद्दार।
प्रलयंकर शंकर विभो , करो दनुज संहार।।१७।।
दुश्शासन करता हरण , भरी सभा निर्लाज।
ठोक रहा निज जांघ को , दुर्योधन आवाज।।१८।।
पुन: उठाओ पाशुवत् , हे त्रिनेत्र भु्वनेश।
नंदीश्वर तारक दमन , महादेव हर क्लेश।।१९।।
शूलपाणि जगदीश शिव , हरो जगत संताप।
कर निकुंज कुसमित सुरभि,जलता ख़ुद मन पाप।।२०।।
आज महाशिवरात्रि में , रख पूजन उपवास।
परिणय गौरी - शिव प्रभो , दर्शन मन अभिलाष।।२१।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली
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कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" नयी दिल्ली
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