कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" नयी दिल्ली

 


पनप   रहे   बहु  कंस  अब ,भारत   माँ  है  त्रस्त।
राम   कृष्ण अवतार   फिर , दुश्मन  होगा   पस्त।।१।।


सत्यवीर    मानव   सदा , शान्तिदूत   बस  ध्येय।
मानवता   संकट   जभी , सर्वनाश   खल     हेय।।२।।


परिवर्तन   होगा    बहुत ,सन्  दो  हजार     बीस। 
मानक   होगा   राष्ट्रहित , मिटे   खली  अरि टीस।।३।। 


कर्मपथी    मिहनतकशी , होगा   जन    समुदाय।
राष्ट्र   संग उत्थान   निज , होगा   सबसे    न्याय।।४।।


धन   वैभव   मुस्कान   मुख , फैलेगा जन  आम।
सर्वसुखी   परहित   बने , भारत   हो   अभिराम।।५।।


शिक्षा   होगी   जन सुलभ , निर्भय  नारी  शक्ति।
विज्ञान शोध  जग  श्रेष्ठतर , राष्ट्रभक्ति  अनुरक्ति।।६।।


मान   सनातन   धर्म का , राम लला   अभिषेक।
बने   राममन्दिर  भव्य , बिना  किसी  व्यतिरेक।।७।।


सफल   न  होगा  दहशती , सर्वनाश अरि पाक।
राष्ट्र  द्रोह  गद्दार  सब , अब  होंगे  जल   ख़ाक।।८।।


समरसता   होगी   वतन , बढ़े  आपसी     प्रीत।
सहयोगी   करुणा      दया , सदाचार   नवनीत।।९।।


गूँजेगा   जन   मन   वतन , भारत  माँ जयगान।
झंडा     लहराए      गगन , रहे    तिरंगा   शान।।१०।।


जय    हिन्द    नवरंग  से , रंजित   होगा   देश।
गूँजे   वन्दे    मातरम् , नमो      राष्ट्र      संदेश।।११।।


भेद   मिटेगा   जाति  का , भाषा कौम  विवाद।
शान्ति  प्रगति  सम्मान    यश , फैलेंगे  निर्बाध।।१२।।


भारत  होगा  विश्वगुरु , किसान  ज्ञान  विज्ञान। 
महाशक्ति  उन्नत शिखर , अधिनायक सम्मान।।१३।।


कवि निकुंज आश्वस्त मन , नीति प्रीति समवेत।
संविधान  समरस   अमन , हो  भारत   उपवेत।।१४।।


कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नयी दिल्ली


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