पनप रहे बहु कंस अब ,भारत माँ है त्रस्त।
राम कृष्ण अवतार फिर , दुश्मन होगा पस्त।।१।।
सत्यवीर मानव सदा , शान्तिदूत बस ध्येय।
मानवता संकट जभी , सर्वनाश खल हेय।।२।।
परिवर्तन होगा बहुत ,सन् दो हजार बीस।
मानक होगा राष्ट्रहित , मिटे खली अरि टीस।।३।।
कर्मपथी मिहनतकशी , होगा जन समुदाय।
राष्ट्र संग उत्थान निज , होगा सबसे न्याय।।४।।
धन वैभव मुस्कान मुख , फैलेगा जन आम।
सर्वसुखी परहित बने , भारत हो अभिराम।।५।।
शिक्षा होगी जन सुलभ , निर्भय नारी शक्ति।
विज्ञान शोध जग श्रेष्ठतर , राष्ट्रभक्ति अनुरक्ति।।६।।
मान सनातन धर्म का , राम लला अभिषेक।
बने राममन्दिर भव्य , बिना किसी व्यतिरेक।।७।।
सफल न होगा दहशती , सर्वनाश अरि पाक।
राष्ट्र द्रोह गद्दार सब , अब होंगे जल ख़ाक।।८।।
समरसता होगी वतन , बढ़े आपसी प्रीत।
सहयोगी करुणा दया , सदाचार नवनीत।।९।।
गूँजेगा जन मन वतन , भारत माँ जयगान।
झंडा लहराए गगन , रहे तिरंगा शान।।१०।।
जय हिन्द नवरंग से , रंजित होगा देश।
गूँजे वन्दे मातरम् , नमो राष्ट्र संदेश।।११।।
भेद मिटेगा जाति का , भाषा कौम विवाद।
शान्ति प्रगति सम्मान यश , फैलेंगे निर्बाध।।१२।।
भारत होगा विश्वगुरु , किसान ज्ञान विज्ञान।
महाशक्ति उन्नत शिखर , अधिनायक सम्मान।।१३।।
कवि निकुंज आश्वस्त मन , नीति प्रीति समवेत।
संविधान समरस अमन , हो भारत उपवेत।।१४।।
कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नयी दिल्ली
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