कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना‌: मौलिक स्वरचित नई दिल्ली

 दोहा: “🌦️पत्थर की बरसात"🌦️
दंगाई   चारों   तरफ़ , मचा  हुआ     कोहराम।
शुभ प्रभात क्या नमन हो,चहुंमुख रोड विराम।।१।।
पत्थर   की  बरसात में , घायल  हैं     जनतंत्र।
लाचारी    सरकार    में , वोटबैंक       षड्यंत्र।।२।।
जला  रहे  जन सम्पदा , सार्वजनिक   संसाध।
निर्भय     दावानल      बने ,  दंगाई     निर्बाध।।३।।
बची जान कल किसी तरह , फंस दंगाई फांस।
अमन चमन वीरान सा , रुकी  हुई  थी   श्वांस।।४।।
मत   कोसों   रक्षक  वतन , पोषो  मत  गद्दार।
पा    सुकून  हो  सो  रहे ,  गाली   देते    यार।।५।।
पूछो हम पे क्या बीतती , बना  आज मज़बूर।
दंगा   से  घायल  पथी , हूं    घर  से   मैं  दूर।।६।।
तोड़ो फोड़  व आगजनी , सौदागर बन मौत।
दहशत का आलम कुटिल,साजीशें बन सौत।।७।।
बेशर्मी    बन    बेहया , नेताओं   की   फ़ौज। 
भड़काते   उन्माद  को , घर  में  सोतेे   मौज़।।८।। 
शरणागत  पर  गेह   में , बना  आज मैं मीत।
शैतानी  अवरोध  से  , पड़ दहशत  भयभीत।।९।।
सरकारी सब महकमा , पड़ा   सोच में आज। 
बदनामी   दोनों  तरफ़ , गिरे  मौन  बन गाज़।।१०।।
पता  नहीं  कबतक  जले , मानवता सम्मान।
कवि  निकुंज विरुदावली ,गाएं समरस गान।।११।। 
कुर्बानी  जनता  वतन , चढ़ा  भेंट  सरताज।
रतन लाल तज जिंदगी,  बचा देश का लाज़।।१२।।
पत्थरबाजी     बारिशें ,  भारत     लहूलूहान।
समरसता  प्रीति   दफ़न , मुस्काता    शैतान।।१३।। 
मौतें   होती   एकतरफ़ , सजे  चौकड़ी  मंच।
ओछी चर्चा  पटल  पर , करें  न्याय   सरपंच।।१५।।


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना‌: मौलिक स्वरचित
नई दिल्ली


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