दोहा: “🌦️पत्थर की बरसात"🌦️
दंगाई चारों तरफ़ , मचा हुआ कोहराम।
शुभ प्रभात क्या नमन हो,चहुंमुख रोड विराम।।१।।
पत्थर की बरसात में , घायल हैं जनतंत्र।
लाचारी सरकार में , वोटबैंक षड्यंत्र।।२।।
जला रहे जन सम्पदा , सार्वजनिक संसाध।
निर्भय दावानल बने , दंगाई निर्बाध।।३।।
बची जान कल किसी तरह , फंस दंगाई फांस।
अमन चमन वीरान सा , रुकी हुई थी श्वांस।।४।।
मत कोसों रक्षक वतन , पोषो मत गद्दार।
पा सुकून हो सो रहे , गाली देते यार।।५।।
पूछो हम पे क्या बीतती , बना आज मज़बूर।
दंगा से घायल पथी , हूं घर से मैं दूर।।६।।
तोड़ो फोड़ व आगजनी , सौदागर बन मौत।
दहशत का आलम कुटिल,साजीशें बन सौत।।७।।
बेशर्मी बन बेहया , नेताओं की फ़ौज।
भड़काते उन्माद को , घर में सोतेे मौज़।।८।।
शरणागत पर गेह में , बना आज मैं मीत।
शैतानी अवरोध से , पड़ दहशत भयभीत।।९।।
सरकारी सब महकमा , पड़ा सोच में आज।
बदनामी दोनों तरफ़ , गिरे मौन बन गाज़।।१०।।
पता नहीं कबतक जले , मानवता सम्मान।
कवि निकुंज विरुदावली ,गाएं समरस गान।।११।।
कुर्बानी जनता वतन , चढ़ा भेंट सरताज।
रतन लाल तज जिंदगी, बचा देश का लाज़।।१२।।
पत्थरबाजी बारिशें , भारत लहूलूहान।
समरसता प्रीति दफ़न , मुस्काता शैतान।।१३।।
मौतें होती एकतरफ़ , सजे चौकड़ी मंच।
ओछी चर्चा पटल पर , करें न्याय सरपंच।।१५।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक स्वरचित
नई दिल्ली
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