कवि✍️डॉ. राम कुमार झा “निकुंज दिल्ली


बड़बोलापन है बुरा , खोए बुद्धि विचार।
फँसे सभा चहुँओर से , बिन उत्तर लाचार।।१।।
बड़ी कीमती है बयां,सोच समझ कर बोल।
फँस फाँस पछताएगा , खुलेगा सब पोल।।२।।
पद की गरिमा है बड़ी , करो नहीं अपमान।
तभी सफल होता मनुज,अपरों को सम्मान।।३।।
मौन साध है कुंचिका ,सही वक्त मुँह खोल।
अनुभव की परिपक्वता , वाणी है अनमोल।।४।।
मार पीट दंगा कलह , करें न ऐसा काम।
भड़केंगे जनता वतन , होंगे जग बदनाम।।५।।
बने धीर सहिष्णु नित , वाणी हो गम्भीर।
सदा प्रभावी कर्ण प्रिय , मानक बने ज़मीर।।६।।
करो न ऐसा काम तुम , राष्ट्र बने कमज़ोर।
टूटे समरस मधुरिमा , राष्ट्र द्रोह घनघोर।।७।।
रचो नहीं साजीश तुम,करो न जन गुमराह।
चलो साथ मिल देश के , प्रेम परस्पर चाह।।८।।
करो धनी व्यक्तित्व को , मर्यादित आचार।
सार्वजनिक या व्यक्तिगत , निर्मल मन ख़ुद्दार।।९।।
बनो विवेकी सोच दिल , तभी बढ़ो नव ध्येय।
पाओ यश धन पद सुखद,जीवन जन मन गेय।।१०।।


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा “निकुंज”
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली


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