कवि✍️ डॉ.राम कुमार "निकुंज"
नई दिल्ली
विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः🌹 कर स्वागत मधुमास🌹
कुसमित मंजर माधवी , मुदित रसाल सुहास ।
कलसी प्रिया हिली डुली , कूक पिक उल्लास।।१।।
नवयौवन सुष्मित प्रकृति,सजा धजा ऋतुराज ।
खिली कुमुद पा चन्द्रिका , चाँद प्रीत सरताज।।२।।
मधुशाला मधुपान कर , मतवाला अलिवृन्द।
खिली कुसुम सम्पुट कली , पा यौवन अरविन्द।।३।।
नवकिसलय अति कोमला ,माधवी लता लवंग।
बहे मन्द शीतल समीर , प्रीत मिलन नवरंग।।४।।
नवप्रभात की अरुणिमा , कर स्वागत मधुमास।
दिव्य मनोरम चारुतम , नव जीवन अभिलास।।५।।
खगमृगद्विज कलरव मधुर , सिंहनाद अभिराम।
लखि वसन्त गजगामिनी,मादक रति सुखधाम।।६।।
नवजीवन उल्लास बन , सरसों पीत बहार।
मंद मंद बहता पवन , वासन्तिक उपहार।।७।।
नयना निर्झरनी बनी , श्रावण प्रीत वियोग।
देख चकोरी मिलन को , सिसक रहा संयोग।।८।।
वासन्तिक इस मधुरिमा , मीत प्रीत शृंगार।
नव ख्वाबों से फिर सजे , टूटे दिल के तार।।९।।
मन्द मन्द बहती हवा , सहलाती हर घाव।
कोयल बन मृदु रागिनी , प्रीत मिलन सम्भाव।।१०।।
है वसन्त नव किरण बन ,मन मादक रति राग।
लता लवंगी प्रियतमा , मचल सजन अनुराग।।११।।
अति विह्वल मृदुभाषिणी , सज सोलह शृङ्गार।
दूजे सम मुस्कान से , साजन दे उपहार।।१२।।
मृगनयनी सम चंचला , कोमल गात्र सुवास।
आतुर हृदया मानिनी , प्रीत मिलन अभिलास।।१३।।
मौसम बना लुभावना , मीठी मीठी शीत।
राहत देती रविकिरण , प्रेम युगल उद्गीत ।।१४।।
नवपादप नवपल्लवित ,सुरभित पुष्पित फूल।
बन विहार नव प्रीत का , वासन्ती अनुकूल।।१५।।
मन पावन गंगा समा , कामदेव सम रूप।
विनत शील गुण कर्म चित , वासन्तिक सम धूप।।१६।।
त्याग सहज समधुर प्रकृति, सत्य पूत प्रिय भाष।
आनंदक ऋतुराज सम , पूर्ण मनुज अभिलाष।।१७।।
चहक व्योम उड़ता विहग,उन्मुक्त चाह सुखधाम।
सरसिज सम कुसुमित मनुज,आह्लादक अभिराम।।१८।।
नवजीवन उल्लास बन , सरसों पीत बहार।
मंद मंद बहता पवन , वासन्तिक उपहार।।१९।।
अभिनंदन ऋतुराज का , करे चराचर आज ।
रखें स्वच्छ पर्यावरण , समरसता आगाज़।। २०
रंजित नित चितवन निकुंज , इन्द्रधनुष सतरंग।
तुषार हार मोती समा , चहके प्रीत उमंग।।२१।।
कवि✍️ डॉ.राम कुमार "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नई दिल्ली
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