कविता - कई पीढ़ियों की गाथाएँ
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मेरे अंतर मन में रहती ,कई पीढ़ियों की गाथाएँ !
लहू शिराओं में बहती हैं , महासमर की युद्ध कथाएँ !!
पुरखों का ये गाँव बसा है इंद्रप्रस्थ यमुना के तट पर !
नस्लों का परिणाम फसा है आज हस्तिनापुर के अंदर !
खेल जुए का अब भी जारी ,चीर हरण होता द्रोपद का !
अंधे युव राजों के नीचे होती अब भी मूक सभाएं !
मेरे अंतर मन में रहती कई पीढ़ियों की गाथाएँ !!1
बोद्ध गया का परिसर देखा वैशाली के शिलालेख भी !
कौशांबी की लाट देखकर जाना पुरखों का विवेक भी !
गौतम देश देश में घूंमे दुनियाँ ने उनके पग चूमे !
अपना राष्ट्र मलीन हो गया काम न आयी मर्यादाएं !
मेरे अंतर मन में रहती कई पीढ़ियों की गाथाएँ !!2
पांडव स्वर्ग सिंधार गए हैं गद्दी पर बैठे दुर्योधन !
राजनीति के गलियारों से लूट रहे हैं मनमाना धन !
विदुर नीति भी गौण हो गयी ,माधव गीता ज्ञान खो गया !
कलयुग के इस कोलाहल में मूक हो गयी वेद ऋचायेँ !
मेरे अंतर मन में रहती कई पीढ़ियों की गाथाएँ !!3
भारत माता मांग रही है लेखा अब बीते सालों का !
किसके पास बही खाता है घाटी में सोये लालों का !
कितनी चूड़ी टूट गयी हैं कितनी सेजें रुंठ गयी हैं !
दिल्ली खोज नहीं पायी है "हलधर "अब भी सही दिशाएँ !
मेरे अंतर मन में रहती कई पीढ़ियों की गाथाएँ !!4
हलधर -9897346173
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