कवि नितिन मिश्रा'निश्छल' रतौली

जाने कैसे फूट फूट माँ का आँचल रोया होगा । वो छाती रोयी होगी जिसने बेटा खोया होगा ॥ जाने कितने ही गुलाब की पंखुड़ियाँ बिखरी होंगी । औ कितने ही नई नवेली सी माँगे उजड़ी होंगी ॥ जाने कैसे राखी का हर इक धागा टूटा होगा । और अस्क से जाने कितना ही काजल छूटा होगा ॥ भूल गये हम उन्हे आज के दिन थे जो बलिदान हुये । प्रेम दिवश के दिन जाने कितने सैनिक कुर्बान हुये ॥ मैं उनके चरणों मे निज तन मन धन अर्पित करता हूँ । निश्छल मन से उनको श्रद्धाँजली समर्पित करता हूँ ॥ चला गया जो सरहद पर अबतक वो प्यार नहीं लौटा । एक वर्ष हो गया है राखी का त्यौहार नहीं लौटा ॥ होली मे आँशू छलके चेहरे पर लाली न आयी । देखो पापा चले गये अबकी दीवाली ना आयी ॥ याद नहीं जो कफन बाँध कर के सरहद पर चले गये । याद नहीं जिनके शोंणित से अबतक दीपक जले गये ॥ हम अपने परिवारों के संग खुशियों मे यूं झूल गये । जो कुर्बान हुये पुलवामा में हम उनको भूल गये ॥ मैं उनके चरणों मे यह जीवन भी अर्पित करता हूँ । निश्छल मन से उनको श्रद्धाँजली समर्पित करता हूँ ॥
कवि नितिन मिश्रा'निश्छल' रतौली सीतापुर8756468512


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...