यादों में नहीं**
तुझे याद करते-करते ,
रात-रात भर जगना ,
हो गया है ,
मेरी आदत में शुमार सजना ,
कितना बदल गया है ,
किया तेरा करार ,
और कितना खो गया है ,
मेरा करार ।
खत्म होने का नाम नहीं लेता ,
तेरे आने का इंतजार ,
बातें बहुत करनी है ,
तुम्हें बतलाना है ,
सही हुई दूरियों की ,
तकलीफों को ।
बेचैनी भरे पल-पल का ,
मेरा यह संदेश ,
काश !
तुम तक पहुंचा देती ,
ये चलती हवाएं ,
मचलती घटाएं ,
और तुम लौट आते ,
यादों में नहीं ,
हकीकत में रूबरू ,
हल करने को ,
बढ़ी हुई सारी समस्याएं ।
रचित --- 24 - 05 - 2017
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