ग़ज़ल
टूटे हैं अरमान सारे आज दिल के ।
रह गए पीछे की राहों में फिसल के ।
क्या गिला किस्मत से अब अपनी करूं मैं ,
मैं सदा प्यासा रहा हूं जल से मिल के ।
हर तरफ दलदल नजर आए यहां पर ,
इससे कोई तो दिखाए अब निकल के ।
अब करू किससे शिकायत में बता दो ,
लग गए सब राह अपनी मुझको छलके ।
एक दिन तूने भी तो छोड़ा अकेला ,
जिंदगी को मेरी चाहत से बदल के ।
ढल गए हम कौन सी सूरत में जाने ,
आज साथी मोम के जैसे पिघल के ।
हमने भी पत्थर बनाया है कलेजा ,
अब लगा दो आग घर को मेरे चल के ।
हम लिखेंगे अब नई अपनी कहानी ,
छोड़ देंगे सब जो किस्से थे कल के ।
"टेंपू" जलने दो खुद को आग में तुम ,
सच खरा ही तो हुआ है सच में जल के ।
रचित ----- 13 - 06 - 2009
Mo. 09992318583
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