कवि सिद्धार्थ अर्जुन           छात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय

,,,,,,,  "टिकता नहीं घमण्ड" ,,,,,,


इंसान बोल तेरा ये कैसा फ़ितूर है,
टिकता नहीं घमण्ड, तू क्यों इसमें चूर है..


कागज़ पे हासियां बनाके क्या मिला बता?
नफ़रत की वादियाँ बसा के क्या मिला बता?
दलदल में धँसता जा रहा ये कोहिनूर है,
टिकता नही घमण्ड ,तू क्यों इसमें चूर है........


चन्दा बनाया जैसे काली रैन के लिये,
रब ने बनाया तुझको,अम्न-चैन के लिये,
क्यों अम्न-चैन से तू आज कोसों दूर है?
टिकता नहीं घमण्ड,तू क्यों इसमें चूर है....


ये ऊँच-नीच छोड़ दो, ये ओछा ऐब है,
ये जात-पात तो ख़ुदा के संग फ़रेब हैं,
तू झाँक आज,तुझमें,नेकियों का नूर है,
टिकता नहीं घमण्ड, तू क्यों इसमें चूर है......


इंसान बोल तेरा ये कैसा फ़ितूर है?
टिकता नहीं घमण्ड, तू क्यों इसमें चूर है...?


                 कवि सिद्धार्थ अर्जुन
          छात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय
                   08/02/2020


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