कवि सिद्धार्थ अर्जुन

गर्भ की ओर जाती बेटी,
रुकी,
लौटी,
बोली,
नहीं जाऊँगी,
वो नहीं आने देंगे मुझे 
अपनी दुनिया में,
तुम करो एक काम,
भेज दो पहले ,
ज़्यादा सा दहेज़,
माँ की कोख़ में,
फिर मैं चली जाऊँगी
ख़ुशी-ख़ुशी..........


          कवि सिद्धार्थ अर्जुन


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...