कुमार कारनिक  (छाल, रायगढ़, छग)


     कुमार कारनिक
 (छाल, रायगढ़, छग)
""""""""
     मनहरण घनाक्षरी
       *मेरी परछाई*
        """""""'"""''"""""
मेरी     परछाई    यहां,
बैठ     सुखदाई   यहां,
देता  फूल - फल  सब,
       सुकून मिलता है।
🌳
बीज   से   पेड़  तैयार,
बन   जाओ  होशियार,
मुझसे  ही  तो  दुनियां,
     सासों मे बसता है।
🌴
नही   काटो  बंधु  मुझे,
मेरे  लिए  क्यों  उलझे,
मुझसे   ही  आसियानें,
        जंगल कहता है।
🌳
है पति पत्नी की छाया,
है सब रिश्तों की माया,
तेरी     मेरी     परछाई,
        मन में बसता है।


              🙏🏼
                 *******


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...