कुमार कारनिक   (छाल, रायगढ़, छग)


   मनहरण घनाक्षरी
       *सच/सत*
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सच  में   कितने   लोग,
उम्र   भर   किये  भोग,
लग   गया   झूठा  रोग,
      फर्ज तो निभाईये।
0
सत  बात   बोल   तुम,
मन  आपा खोल  तुम,
सच्चाई  को   पहचान,
         धरम निभाईये।
0
कांटों मे  चलना  होगा,
हंस  के  टालना  होगा,
परीक्षा   लेती  सच्चाई,
         राह तो बनाईये।
0
कदम    आगे   बढ़ाना,
आप  न  डग - मगाना,
सच   के  खातिर  तुम,
         न लड़खड़ाईये।



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