कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी लखनऊ

नीर:: नैनों से नीर न बहने दो,
          दिल की दिल में,ना रहने दो,


तुम नीर क्षीर विवेकी बन,
नामुमकिन को मुमकिन कर दो,


आशाओं को अपना बल दो,
हौसलों को उड़ाने भरने दो,


हर मुश्किल का हल बनकर,
पंखों को परवाज़ पर चढ़ने दो,


पथ तेरा नभ सा उज्व्वल हो,
मन तेरा नीर सा निर्मल हो,


जनमत का तुझको संबल हो,
परास्त तेरे सब खल दल हों,


तू आगे आगे नित बढ़ता जा ,
बंजर में भी तू फूल खिला,


मत कम होनें दे तू लगन अपनी,
  है गगन अपना धरती अपनी,


तू लांघ जा पर्वत की दरारों को,
अब फांद ले ऊंची मिनारों को,


इतिहास नया तू रचता जा,
बाधाओं से तू लड़ता जा,


तन तेरा तपकर तब सोना होगा ,
तेरा वह रुप सलोना होगा ,


तू देश का लाल कहलायेगा,
 जब शहीद का दर्जा पायेगा| 


कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी लखनऊ


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...