लता प्रासर

सुप्रभात


कचरा भरा दिमाग में मन  कस स्वच्छ हो भाई
अपने आगे सब फीका है बन बैठा कसाई
स्वच्छ जगत हो स्वच्छ धरा हो सोचो सोचो
अपनी बात किए जाते हैं जनता जस लुगाई
लुट रही बिटिया लुटी व्यवस्था लूटा जन गण
भूखे पेट सोया है मुन्ना मुन्नी की छूटी पढ़ाई
टकटकी लगाए आंखें हैं कहां गया बच्चे की कमाई!
*लता प्रासर*


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