लता प्रासर

*गुलबिया शुभरात्रि*


दिन खिले गुलाब जैसा होए रात गुलाबी 
कांटे जिनकी रक्षा करते देखा उनकी नवाबी
कोमल कोमल पंखुड़ियों सा जीवन धारा
चमक चमक मुखड़ा हुआ आफताबी!
*लता प्रासर*


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