लिख कर हाल-ए-दिल मुझसे..दिखाया ना गया
इस चश्मे-तर आंखों को मुझसे छिपाया ना गया
सितम क्या हुआ जख्मी दिल के साथ मेरे मौला
निशां बदन पर चोट का मुझसे मिटाया ना गया
वक्त ने बहुत तालीम दे दी जाते जाते फकीर को
इश्क में हद से गुजरना मुझसे सिखाया ना गया
रात कोरी मेरे आंगन से यूँ चुपचाप गुजरने लगी
बाहों में भर के चाँद रात मुझसे बिताया ना गया
फेर कर रूख बैठी है हाँथ की लकीरें आज भी
जोड़ दे जो हाँथ को वो साथ मिलाया ना गया
खाक जो परी है मेरे जलते हुए से पांव पर तो
ज़हर चाहत का वापस उसे खिलाया ना गया
Priya singh
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