मासूम मोडासवी

फितरत बदलने वाले इशारे नहीं देखे
रंगत को निगलते ये नजारे नहीं देखे


मिलजुल के जीने के करते रहे अरमां
गीरते हुवे गर्दिश के सितारे नहीं देखे


कुरबत की हसरत लिये निकले तो हो लेकिन
सागर से मगर दो दुर किनारे नहीं देखे


वो पासमें आजाये तो हो दुर शिकायत
धडकन में  उबलते  हैं शरारे नहीं देखे


मासूम मशक्कत से  कभी पीछे नरहें आप
उलजे  हुवे तकदीर  के वो  मारे  नहीं देखे


                        मासूम मोडासवी


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...