*मेरी धड़कन हो...*
विधा : कविता
धड़कता दिल अब मेरा,
तुम्हारे ही लिए।
मेरी दिल की धड़कन,
बन जो गई।
मुझे पता ही नही,
ये हुआ कैसे।
अब भूलना भी चाहूं,
पर भूलता ही नहीं।।
निकलती है दिल से वो,
हर सांस तुम हो।
जो बोले बिना ही,
व्या कर देती।
चोट लगती है तुमको,
दर्द मुझे होता है।
क्या हाल हो गया,
मेरी जिंदगी का।।
तुम्हें क्या होता है,
मुझे नहीं पता।
दीवानापन मुझ में शमा,
सा गया है।
तड़प मिलने की है तो,
तड़प में भी रहा।
मिलन की शुभ घड़ी,
दोनों देख रहे।।
दोनों देख रहे ...।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
05/02/2020
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