मुकेश सोनी सार्थक
बुद्धेश्वर रोड़ रतलाम
मो.9752052608
कविता
गर्द
गर्द से लिपटे शीशे जैसा
मेरा जीवन जीने को
अनजाना कोई चेहरा
गर्द हटा कर आँचल से झाक रहा है भीतर को
मन की सुनी गलियों में फिर मेलो की गन्ध मिली
फिर चाहत की खुशबू मात कर रही चंदन को
फिर भीगी मिट्टी की खुशबू अलसाये पेड़ो की छाँव को
याद दिला कर चली गई बारिश की कागज की नाव को
उन राहो को तकता रहता जिनका कोई पता नही
उस खत को पढ़ लेता हूँ जो
उसने अब तक लिखा नही
अँखियों का पैगाम मिला है
फिर अँखियों के नाम को
मुकेश सोनी सार्थक
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
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