मधु शंखधर 'स्वतंत्र'* *प्रयागराज*

*मधु के मधुमय मुक्तक*
🌷🌷🌷🌷🌷🌷


*विश्वास*
◆मन में उठती भावना इक आस है।
इक सुखद अनुभूति का एहसास है।
राह एक सबको मिलाती है यहाँ,
उसको अपनाता महज विश्वास है।।


◆माँ ने जन्मा लाल को ये प्यार है।
ये सृजन की भावना का सार है।
एक बस विश्वास की डोरी बंधी,
ये ही अनुपम जीव का व्यवहार है।।


◆राह हो मुश्किल तो जीवन आस है।
आस में ही शक्ति का एक वास है।
जो बना दे जिन्दगी को चाह एक
*मधु*  ये मानव का अटल विश्वास है।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र'*
*प्रयागराज*
*11.02.2020*
🌹🌹 *सुप्रभातम्*🌹🌹


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...