नन्द लालमणि त्रिपाठी (पीताम्बर )

2---ग़ज़ल - चाहत की ऊंचाई को बाजार नहीं बनने देते
 दिल सांसों धड़कन की गहराई में ही रहने देते !!
नादा हैं वो                             जो दुनिआ को नादान समझते रहते हैं                              शायद उनको नहीं मालूम नहीं लम्हा लम्हा दुनिआ के रंग बदलते है !!
लम्हा लम्हा रंग बदलति दुनिआ में नियत और ईमान बदलते रहते  है !!
 दिलोँ का दिल से  रिश्ता ही नहीं, रिश्तों के अब व्यापार भी होते रहते हैं ।।                           रिश्तों के बाज़ार हैं अब             रिश्तों के इन बाज़ारो में  रिश्तों के बाज़ार भी सजते रहते हैं !!
चाहत की ऊंचाई को बाजार नहीं बनने देते
 दिल सांसों धड़कन की गहराई में ही रहने देते !!
रिश्तों  की कीमत  मौका,और मतलब रिश्तों के बाज़ारों की दुनिआ में अक्कसर रिश्ते, रिश्तों की खातिर शर्मशार हो  नीलाम ही होते रहते हैं !।                     दुनिआ की भीड़ में भी इंन्सा तंन्हा खुद में खोया खोया खुद को खोजता ।।                           दुनिआ की भीड़ अक्सर नफ़रत की जंगो के मैदान बनते रहते है !!
 मतलब की नफ़रत की जंगो में इंन्सा एक दूजे का कातिल          लहू की स्याही की इबारत की तारीख बनाते रहते हैं !!
कभी परछाई भी ऊंचाई दुनिआ छू  लेने को पागलपन               कभी  ऊंचाई की तनहाई  छलकते आंसू ,जावा जज्बे के पैमाने से छलकते गुरूर का सुरूर दुनिआ को बताया करते हैं !! तंन्हा इंन्सा की तन्हाई उसकी परछाई की ऊंचाई की तन्हाई के आंसु ,ख्वाबों ,अरमाँ के मिलने और  बिछड़ने का खुद हाल बयां ही करते रहते !!
 चाहत की ऊंचाई को बाजार नहीं बनने देते
 दिल सांसों धड़कन की गहराई में ही रहने देते !!
नन्द लालमणि त्रिपाठी (पीताम्बर )


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