निशा"अतुल्य"
देहरादून
बाग़बाँ
दिनाँक 8/ 2 /2020
बाग़बाँ इस चमन का क्यों कभी दिखता नही
हर पल बदलते चित्र सारे चित्रकार दिखता नही
माँ पिता हैं बाग़बाँ मेरे चमन के दोस्तों
जो चला रहा संसार को वो मगर दिखता नही।
फूल सारे हैं चमन में रंग रूप हैं सबके अलग
बाग़बाँ सबको सवारें कोई जुदा दिखता नही।
रहमतें उसकी बड़ी हैं समझते क्यों हम नही
साया है मात पिता का जब तक कुछ मुश्किल दिखता नही।
हम भी सवारें इस वतन को कर निगेहबानी सदा
ये वतन हम सबका देखो बागबान क्यों कोई दिखता नही।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
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