निशा"अतुल्य"

*कान्हा खेलन गए थे होली* 
16 /2 /2020


बरसाने में खेलूं होली
राधा तू तो मेरी हो ली
फंस गया आकर नँद का लाला
नीचे आजा खेलें होली।


छुप छुप कर मैं था आया
मोर पंख ने पता बताया
प्रीत रंग में रंग गया मैं तो
नहीं चढ़े कोई रंग बताया।


सखियों को ले तू समझाये
बात मान जा गिरधर आये
खेलेंगे मिल कर हम होली
प्रीत रंग में रहे भिगोये ।


बरसाने का रंग निराला
चढ़े अगर फिर उतर न पाये
राधा तुझमें प्राण बसे हैं
प्रीत की रीत निभाये होली ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...