निशा"अतुल्य"

विधा     कविता
5/ 2/ 2020
     कविता 
कविता मेरे मन भाव की
उपवन में महक फूलों की 
स्वछंद उड़े तितली बनके
गुंजार है उसमें भँवरें की।


कभी विरह की बात उठे
कभी मिलन की रात लिखूँ
कभी हँसना हंसाना सँग चले
कभी रूठों की मनुहार लिखूँ ।


भाव जो मन में उठते हैं 
प्रबल वेग से बहते हैं 
मैं बांध न इनको साथ रखूं
ये मसी कागज पर बहते हैं।


न छंद लिखूं न गजल कहूँ
ये अपने मे मस्त ही रहते हैं 
भावों को पिरोकर शब्दों को
ये सँग जीवन के बहते हैं ।


अब साँस साँस में बसती है 
जीवन की धड़कन बन बैठी है 
कविता मेरी कविता बन कर
ह्रदय पटल भावों से भर बैठी है ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


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