निशा"अतुल्य"
देहरादून
पहचान बदल जाती है
दिनाँक 17/ 2/ 2020
वक़्त बदलता है जब
इंसान चला जाता है
कहलाता था जो शरीर
वो मिट्टी कहलाता है।
मिलकर पंचभूत में
पहचान बदल जाती है।
कल जो चलता था शरीर
तस्वीर बदल जाती है।
होता था जो खुश
पहन गले में हार
देख तस्वीर पर उसे
ज़िन्दगी आँख चुराती है।
अज्जब गज्जब सी रवायतें है
कहाँ कुछ कहती सुनती है
निकलती सांस शरीर से
नाता सबसे तोड़ जाती है।
तिनका-तिनका जोड़
बनाया था एक जहां
एक पल न लगा उसे
छोड़ जाने कहाँ चली जाती है।
समय गुज़रता है जब जैसे
सूरते हालात बदल जाती है
बनकर मिट्टी शरीर की
पहचान बदल जाती है ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
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