निशा"अतुल्य" देहरादून


जीवन


शिव होना आसान नही 
कोई देखे भांग धतूरा
कोई गंगा विशाल
किसी ने देखी नागों की माला
किसी ने डमरू और काल
सोच सबकी अलग अलग
अलग सबका व्यवहार 
फिर भी साथी 
कहीं न कहीं 
एक दूजे के साथ।
नही होता जीवन पार
अकेले 
बनाना पड़ता है कारवाँ
जीवन का
जो चले साथ धूप छाँव में
भूख प्यास में 
पता है अंततः 
सफर अकेले ही निभाना है।
फिर भी मोह माया राग द्वेष से मुक्त
जीवन कहाँ मिल पाता है ।
शिव बनना कहाँ है बस में
पीकर गरल कौन 
जीवित रह पाता है।
रोक कर कंठ में विष 
शिव ये बताता है 
बड़ा विष बोल का 
इसे जिसने रोका कंठ में
वही इस भव से तर जाता है ।


स्वरचित
निशा"अतुल्य"


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