निशा"अतुल्य" देहरादून

प्रभुता
दिनाँक      6 /2/ 2020


प्रभुता देख विस्मित हूँ प्रभुवर
भाँति भाँति के फूल खिलाये
फूल खिलाये वो तो बेहतर
इतने रंग प्रभु कहाँ से आये ।


तितली उड़ती इधर उधर है
मधु फूलों का चूस रही है
मधु चूस रही वो तो बेहतर
इतना मिठास कहाँ से आई।


भिन भिन करती मधु मक्खी
इतना सारा शहद बनाई 
शहद बनाई वो तो ठीक है 
पर ये तकनीक कहाँ से आई ।


सूरज उगता समय से अपने 
और शाम को छिप जाता है 
दोनों बात तो ठीक है प्रभुवर
पर छिप कर वो कहाँ पे जाये।


नभ पर चाँद सितारे देखो टँगे हुए हैं उल्टे सारे
प्रभुता तेरी तू ही जाने, मैं तो हूँ बालक अज्ञानी
बस देना ज्ञान प्रभु मुझको, रखूं साथ सदा अपनो का
मुझको अपनी शरण में रखना, जैसे क़ायनात है सारी।


स्वरचित 
निशा"अतुल्य


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