निशा"अतुल्य" *पत्थर* पत्थरों का भी अपना अपना नसीब होता है 

 


निशा"अतुल्य"
*पत्थर*


पत्थरों का भी अपना अपना नसीब होता है 
कोई खाता ठोकर कोई भगवान बन जाता है ।
मन की भावनाओं का है खेल सारा
हाँ ये ही सच है भाग्य पत्थरों का भी होता है ।


अब इंसान भी पत्थर सा दिल रखते हैं
धड़कने है दिल में अहसास न जाने कहाँ सोता है।



दुख में है पड़ोसी और तू तान के चादर सोता है 
न पूछता है कोई बात न दिल की बात कहता है ।


टूट रही रिश्तों की कड़ियाँ बस अपने घर को सीता है 
ना जाने हो गया है क्या इंसान को क्यों खुदगर्जी में जीता है ।


हाँ कुछ पत्थर सा इंसान रहता है नसीब अपना अपना
इंसानों के साथ नसीब पत्थरों का भी होता है ।


रखो भावनाओं का प्रस्फुटन, प्रेम का दरिया खुद में 
पत्थर बन कर नही कुछ हासिल तुम्हे होता है ।


स्वरचित 
निशा"अतुल्य"


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