निशा"अतुल्य"
*प्रेम स्तुति*
तेरी राह निहारूँ मैं तो, कब आओगे
बोलो कान्हा
बन जाऊं मैं तेरी राधा,बन पाऊँगी क्या
मैं कान्हा
सोच सोच कर विचलित होती कैसे तुम
को मैं पाऊँगी
राह विषम लगती जीवन की,तुम ही
राह दिखाओ कान्हा।
मीरा भी बन जाऊं प्रभुवर पी जाऊंगी
मैं भी हाला
वैराग्य दिखाओ बोध जगाओं मन के
अंदर तुम्हीं कान्हा।
द्रोपदी सा मित्र बनाऊं कष्ट पड़े तो तुम्हे पुकारूँ
मित्र बन कर तुम आ जाना,मेरी लाज
बचाने कान्हा।
उद्धव सुदामा बन कर मैं भी तेरे भक्ति
के गुण गाऊँ
मुझको भी तुम भक्ति देना जैसी भक्ति
उन्हें दी कान्हा।
मेरा मन नही लगता तुम बिन बैठी राह
निहारूँ हर पल
कब होगा जीवन का वो पल जब देखूं
तुमको हर पल कान्हा।
प्रेम रस का अद्भुध अनुभव तुमसे ही
सिखा है मैंने
माखन मिश्री भोग रखा है आओ भोग
लगाओ कान्हा।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
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