निशा"अतुल्य"
देहरादून
बेटियाँ
24 /2 /2020
जीवन का श्रृंगार बेटियाँ,
जिद्द की मनुहार बेटियाँ
बन माँ ख़ुद से हमारी,
जीना सिखलाती बेटियाँ।
कर श्रृंगार लुभाती बेटियाँ
छोड़ बाबुल का घर
पी घर जाती बेटियाँ,
आँगन सुना कर जाती बेटियाँ।
नित नए आयाम बनाती बेटियाँ,
नही कोई काम ऐसा जो
ना कर पाती बेटियाँ
कहीं रेल चलाती कहीं देश बेटियाँ
बाबुल का दिल धड़काती बेटियाँ।
माँ का स्वाभिमान
पिता का गरूर होती हैं बेटियाँ
भाई का बन अभिमान
मान बढ़ाती हैं बेटियाँ।
चमन में बहार आती जब
खिलखिलाती हैं बेटियाँ
भंवरों की गुंजार तितलियों सी
कोमलांग होती हैं बेटियाँ
करो सम्मान इनका सदा
प्यार का सागर है बेटियाँ
करना न तिरस्कार कभी
सृष्टि का करती हैं निर्माण बेटियाँ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
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