अब के बसंत
दिखत नइ ये बसंत ह आगे हे
अब जमाना ह,बदल गे हे
सरसो ह पिवरा गे हे
ढंडा ह ढंडा गे हे
प्रकृति के मन म उमंग छागे हे
करा पानी, बरसात हे
दिखत नइ ये बसंत ह आगे हे
जेखर मन जइसे आत हे
ओइसने करत जात हे
माथा धर के,सब गुनत हे
अब का हो ही, आगू
परमाणु बम, अणु बम
रासायनिक बम, बनात हे
कोनो ला कोनो घेपय नहीं
कोनो ला कोनो टोकय नहीं
दुश्मनी मा,मया सना गे हे
दिखत नइये,बसंत ह आगे हे
होरी डांड गड़ागे हे
फागुन महीना ह,आगे हे
कउने रंग,लगा हूं
आसो के,होरी तिहार मा
मोर बुद्धि ह, सठिया गे हे
मनखे मन नगाड़ा न इ बजावत हे
प्रकृति ह फाग के धुन सुनावत हे
दिखत नइये बसंत ह आगे हे
जिहा चिरई चिरगुन करे चाव चाव
जिहा कऊवा मन करे, काव काव
जिहा कोलिहा कुकुर मन करे हाव हाव
उहे बसथे,मोर छत्तीसगढ़ के गांव
अइसन सुग्घर सरग ले सुंदर भुइया मा
असल खुशी ला,भुला गे हे
विदेशी समान ह,छा गे हे
दिखत नइ ये,बसंत ह आ गे हे
नूतन लाल साहू
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
नूतन लाल साहू
Featured Post
दयानन्द त्रिपाठी निराला
पहले मन के रावण को मारो....... भले राम ने विजय है पायी, तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम रहे हैं पात्र सभी अब, लगे...
-
सुन आत्मा को ******************* आत्मा की आवाज । कोई सुनता नहीं । इसलिए ही तो , हम मानवता से बहुत दूर ...
-
मुक्तक- देश प्रेम! मात्रा- 30. देश- प्रेम रहता है जिसको, लालच कभी न करता है! सर्व-समाजहित स्वजनोंका, वही बिकास तो करता है! किन्त...
-
नाम - हर्षिता किनिया पिता - श्री पदम सिंह माता - श्रीमती किशोर कंवर गांव - मंडोला जिला - बारां ( राजस्थान ) मो. न.- 9461105351 मेरी कवित...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें