अलौकिक दुनिया
कैसा खेल रचा,मेरे दाता
तेरी महिमा, कोई समझ न पाया
जब जब आती है,विपदा जगत में
थरथर कांपे, सारी दुनिया
अभिमान लोगो का, चुरचुर हो जाता है
सहम जाती है,कैसे ये दुनिया
कैसा खेल रचा, मेरे दाता
तेरी महिमा,कोई समझ न पाया
खुद को विधाता,समझ गया था
माया में अंधा, हो चला था
सबको लुटने में, जो लगा था
अकल ठिकाने,अब आने लगी है
कैसा खेल रचा, मेरे दाता
तेरी महिमा,कोई समझ न पाया
इतना अहंकार,क्यों करता है प्राणी
भगवान से भी तू,क्यों नहीं डरता है
जब जब पतन हुआ,मानवता का
पल में नाश हुआ है,जीवन का
कैसा खेल रचा,मेरे दाता
तेरी महिमा, कोई समझ न पाया
युगों युगों से, ये होता आया है
फिर भी तू,समझ न पाया है
छोड़ के तू अपनी,सारी चतुराई
भजन कर तू,चरण कमल अविनासी
कैसा खेल रचा, मेरे दाता
तेरी महिमा, कोई समझ न पाया
सुमिरन कर हरिनाम,सुबह शाम
मानुष जनम,नहीं मिलना है बार बार
माता पिता गुरु, की सेवा कर ले
वो ही है प्राणी,जगत में सार
कैसा खेल रचा,मेरे दाता
तेरी महिमा,कोई समझ न पाया
नूतन लाल साहू
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
नूतन लाल साहू
Featured Post
दयानन्द त्रिपाठी निराला
पहले मन के रावण को मारो....... भले राम ने विजय है पायी, तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम रहे हैं पात्र सभी अब, लगे...
-
सुन आत्मा को ******************* आत्मा की आवाज । कोई सुनता नहीं । इसलिए ही तो , हम मानवता से बहुत दूर ...
-
मुक्तक- देश प्रेम! मात्रा- 30. देश- प्रेम रहता है जिसको, लालच कभी न करता है! सर्व-समाजहित स्वजनोंका, वही बिकास तो करता है! किन्त...
-
नाम - हर्षिता किनिया पिता - श्री पदम सिंह माता - श्रीमती किशोर कंवर गांव - मंडोला जिला - बारां ( राजस्थान ) मो. न.- 9461105351 मेरी कवित...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें