आफत के पानी
मन ह कलपय, फाटय छाती
ठंड म गिरत हे, दिनरात पानी
माघ पुन्नी सुग्घर,परब तिहार
राजिम मेला के,महिमा हे अपार
सावन भादो के बरसा,बादल में चटके
माघ फागुन म बोहावत हे,गली म धार
मन ह कलपय, फाटय छाती
ठंड म गिरत हे,दिन रात पानी
गली सुनसान होगे, रोवत हावे पारा
अइसे में कइसे, चलही गुजारा
गरीब रोये, अमीर रोये
पत्थर बन, बरसत हे जलधारा
मन ह कलपय, फाटय छाती
ठंड म गिरत हे, दिनरात पानी
कोनो मेर ये,फुसुर फासर
कोनो मेर इतरावत हे अडबड़
दुर्बल बर होगे, दु आषाढ़
गम भुलाय बर, दारू पियत हे अड़बड़
मन ह कलपय, फाटय छाती
ठंड म गिरत हे, दिनरात पानी
ये पानी के जलजला
पानी म आग लगावत हे
जे हा कभू न रोये रहिस
वो ला भी रुलावत हे
हाथ गोड ह शिथिल पड़गे
आंखी डहार लेे,आंसू आवत हे
खर खर खर टोटा, ह करत हे
नाक डहार लेे,पानी बोहावत हे
मन ह कलपय, फाटय छाती
ठंड म गिरत हे, दिनरात पानी
नूतन लाल साहू
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
नूतन लाल साहू
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