नूतन लाल साहू

आफत के पानी
मन ह कलपय, फाटय छाती
ठंड म गिरत हे, दिनरात पानी
माघ पुन्नी सुग्घर,परब तिहार
राजिम मेला के,महिमा हे अपार
सावन भादो के बरसा,बादल में चटके
माघ फागुन म बोहावत हे,गली म धार
मन ह कलपय, फाटय छाती
ठंड म गिरत हे,दिन रात पानी
गली सुनसान होगे, रोवत हावे पारा
अइसे में कइसे, चलही गुजारा
गरीब रोये, अमीर रोये
पत्थर बन, बरसत हे जलधारा
मन ह कलपय, फाटय छाती
ठंड म गिरत हे, दिनरात पानी
कोनो मेर ये,फुसुर फासर
कोनो मेर इतरावत हे अडबड़
दुर्बल बर होगे, दु आषाढ़
गम भुलाय बर, दारू पियत हे  अड़बड़
मन ह कलपय, फाटय छाती
ठंड म गिरत हे, दिनरात पानी
ये पानी के जलजला
पानी म आग लगावत हे
जे हा कभू न रोये रहिस
वो ला भी रुलावत हे
हाथ गोड ह शिथिल पड़गे
आंखी डहार लेे,आंसू आवत हे
खर खर खर टोटा, ह करत हे
नाक डहार लेे,पानी बोहावत हे
मन ह कलपय, फाटय छाती
ठंड म गिरत हे, दिनरात पानी
नूतन लाल साहू


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