बेटी की बिदाई
मत रो माता,क्यों रोती है
बेटी तो पराया धन होती है
चाहे धनी हो,चाहे हो निर्धन
वो तो अंगना का,तुलसी होती है
दुनिया के विधि को,विधि ने बनाई है
सच्चाई के राहो में,कांटे तो स्वाभाविक है
कहीं पर सुलह है,तो कहीं पर लड़ाई
हर धर,हर महल की यही है कहानी
मत रो माता,क्यों रोती है
बेटी तो पराया,धन होती है
किसी को शुली मिली है तो
किसी को मिली है रजाई
तो किसी को तो सिर्फ
सूखी रोटी ही मिली है
जीवन के हर मोड़ पर
संघर्ष में ही है भलाई
किसी को मिली है,मक्खन मलाई
मत रो माता,क्यों रोती है
बेटी तो पराया धन होती है
याद कर माता, तू भी तो बेटी है
दुल्हन बनकर,पराया घर आई है
कभी अपनी मुस्कुराहट से तो
कभी अपनी आंसुओ की धारा से
परिवार की बगिया को महकाई है
अपने बेटी की,सपनों को भुल मत जाना
साक्षात नहीं तो क्या हुआ
उनके सपनों में कभी कभी आना
अपने कलेजे के टुकड़े को
हर मुश्किल में राह दिखाना
झूठी शान की इस दुनिया में
सच्चाई से चलना सिखाना
मत रो माता, क्यों रोती है
बेटी तो पराया धन होती है
चाहे धनी हो,चाहे हो निर्धन
वो तो अंगना का तुलसी होती है
नूतन लाल साहू
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
नूतन लाल साहू
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