गुमशुदा की तलाश
सुनहरा पर्यावरण
कहीं गुम हो गया है
उनकी याद में
मेरी आंखो की नींद
हराम हो गया है
मेरा हंसना और मुस्कुराना
बहुत कुछ कम हो गया है
मेरा मन उदास है
गुमशुदा की तलाश है
झील खामोश है
घायल है समुन्दर
तालाब और नदी
मौत की हवाये,आने लगी है
अकाल, बाढ़,भूकंप
तूफान,हत्यारी गैस सब
हमारी पालकी को कंधों पर
लिये चल रही है
सुनहरा पर्यावरण
कहीं गुम हो गया है
गुमशुदा की तलाश है
जिसका नाम हिंदुस्तान है
पर्यावरण के दुश्मनों के कारण
बदनाम है
जिनका कोई ध्येय नहीं है
जिनका कोई उद्देश्य नहीं है
रामायण और गीता से
जिन्हे लगाव नहीं है
पर्यावरण के दुश्मनों ने
सुख और चैन को
चुल्लू भर पानी में डूबो दी
एक पूरी की पूरी सदी
सुनहरा पर्यावरण
कहीं गुम हो गया है
गुमशुदा की तलाश है
नूतन लाल साहू
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
नूतन लाल साहू
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