नूतन लाल साहू

पुरानी यादें
जब गाड़ी,चलती थी
छुक छुक छुक छुक
दिल धड़कता था
धुक धुक धुक धुक
पलकों में,नींद न आती थी
सफ़र रात का हो या दिन का
प्रकृति की तस्वीरे,आती जाती थी
सुबह हो गया या शाम हो गया
इसकी आवाज बताती थी
जब गाड़ी चलती थी
छुक छुक छुक छुक
दिल धड़कता था
धुक धुक धुक धुक
छुन छून करे,जलेबी सी
यादे,आंनद के रस में डूब जाती थी
कुत्ते, भौं भौं कर चिल्लाते
खिड़कियां,सब खुल जाती थी
कितना सुन्दर था,उच्चारण
मानो मिसरी,सी घुल जाती थी
जब गाड़ी चलती थी
छुक छुक छुक छुक
दिल धड़कता था
धुक धुक धुक धुक
ऐसा करेंट सा लगा हमें
किस्मत का लड्डू फुट गया
आधुनिकी करण के चक्कर में
पुराना आंनद, सब भुल गया
किन शब्दों में, व्यक्त करें, उन यादों को
जो अतीत में,कहीं गुम हो गया
जब गाड़ी चलती थी
छुक छुक छुक छुक
दिल धड़कता था
धुक धुक धुक धुक
नूतन लाल साहू


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