ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई

*चलते-चलते:0205*
*⚜ आँखें ⚜*


*चित्त चपल चंचल चितवन, चपला चंद्र चकोरी हो।*
*कुञ्ज कली की कंचन काया, कुमुद कामिनी गोरी हो।।*
*नित्य नमन नित नेह नयन नित, नवनूतन श्रृंगार रहा।*
*जैसे चँदा का पूनम से, सदा सनातन प्यार रहा।*
*नेह सरोवर में अंबुज की, अर्ध खिली सी पाँखें हों।*
*कारी सी कजरारी सी प्रिय, मृगनयनी सी आँखें हों।।*
*जैसे शोभित नीलगगन में, सूरज और सितारे हैं।*
*लाज हया या नेह स्नेह ये, दोनों नयन हमारे हैं।।*
*विपदा कोई अनचाही सी, अपनों पर जब होती हैं।*
*सच कहता हूँ दोनों आँखें, सदा मौन हो रोती हैं।।*
*या खुशियों की खुश्बू कोई, तनमन में छा जाती है।*
*जाने क्यूँ तब अपनी भी ये, दो आँखें भर आती हैं।।*
*लाज हया से पलभर को जब, साँसे तक रुक जाती हैं।*
*अनजाने में जाने कैसे, आँखें भी झुक जाती हैं।।*
*क्रोध अगन में तन तपता जब, अपनी गीली दाल हुई।*
*जाने कैसे अनजाने ही, दोनों आँखें लाल हुईं।।*
*अगर कहीं हम सहज नहीं या, मिलने से कतराते हैं।*
*किन्तु अगर मिल जाए तो भी, उनसे आँख चुराते हैं।।*
*नेह नयन की मेरे प्रियवर, सीधी सत्य कहानी है।*
*सम्मानित है जीवन जबतक, इन आँखों में पानी है।।*


सर्वाधिकार सुरक्षित 
*🌹ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई*


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