*BKN:0102*
*⚜ भोर का नमन ⚜*
(मेरी पुस्तक *गीत गुंजन* से)
*हे मात तुम्हारे पदवंदन के, कैसे गीत सुनाऊँ मैं।*
*अन्तर्मन के भाव कहूँ वे, शब्द कहाँ से लाऊँ मैं।।*
*और तात के उपकारों का, हरगिज अन्त नहीं होता।*
*और गुरू के जैसा कोई, सचमुच संत नहीं होता।।*
*जगत नियंता की गाथा को, कैसे तुम्हें बताऊँ मैं।*
*अन्तर्मन के भाव कहूँ वे, शब्द कहाँ से लाऊँ मैं।।*
*पुण्य मही ये पुण्य गगन ये, सूरज चाँद सितारे हैं।*
*सागर पर्वत हे तरु तरुवर, सकल चराचर प्यारे हैं।।*
*मनवीणा मे सजे तार पर, कैसे उन्हें बजाऊँ मै।*
*अन्तर्मन के भाव कहूँ वे, शब्द कहाँ से लाऊँ मैं।।*
*अरि अरु मित्र मुझे प्रिय दोनों, प्यारा प्रिय परिजन परिवार।*
*नमन भोर का अर्पण हे प्रिय, प्रियवर आप करें स्वीकार।।*
*मनभावों से लाड़ करूँ मै, कैसे तुम्हें मनाऊँ मैं।*
*अन्तर्मन के भाव कहूँ वे, शब्द कहाँ से लाऊँ मैं।।*
सर्वाधिकार सुरक्षित
ISBN:978819439204
*🌹ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई*
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