परिचय कुसुम सिंह 'अविचल' कानपुर

नाम--डॉ०कुसुम सिंह 'अविचल'
पता--1145-एम०आई०जी०(प्लॉट)
रतनलाल नगर
कानपुर-208022
मो०-8318972712
       9335723876
कविता--
                "नमन राष्ट्र के प्रहरी को"
नत है मस्तक सैनिकों के लौह से व्यक्तित्व दृढ़ को,
व्योम से जो उतर भू पर धन्य धरती कर गए है।
दी है दस्तक मृत्यु ने भी डर पे आ के,बन मृत्युंजय
शौर्य से अपने उसे भी मात देने को अड़ गए हैं।
दुश्मनों के घात पर प्रतिघात करने की मनाही,
आदेश की करते प्रतीक्षा,तन को घायल कर गए हैं।
हार न मानी कभी भी,विकट हों या विषम स्थितियां,
बन के आंधी दुश्मनों के दांत खट्टे कर गए हैं।
है जिनका चट्टानी वो सीना, तन तना हिमगिरि के जैसा,
बन खड़ा बौना हिमालय जब वो उसपर चढ़ गए हैं।
तड़तड़ाते टैंक तोपें,आग उगले गन मशीनें,
निडर सैनिक दुश्मनों के दर पे जाके भिड़ गए हैं।
फट गए ज्वालामुखी से,लावा फूटा छू गया नभ,
चिंगारियां बिखरी धरा पर,आग में वो तप गए हैं।
फौलादी सैनिक आग उगले, भय भी उनसे डर गया है,
काल बनके दुश्मनों पर कहर बरपा कर गए हैं।
रणभूमि से भागे कभी न,पीठ पर गोली न खाई,
रौंदते दुश्मन को अपना सीना छलनी कर गए हैं।
धराशायी भी हुए यदि नाम होगा आसमान तक,
शत्रु के स्मृतिपटल पर नाम अपना जड़ गए हैं।
अवनि अम्बर गम में नम हैं,दसों दिशाएं रो रही हैं,
सैन्य वाहनों पर शव शहीदी,लिपट तिरंगे में आ गए हैं।
माँ के आंचल से दुग्ध धारा,आंख से बहता सिंधु खारा,
पथरा गयी आंखे पिता की,लाल उनके सो गए हैं।
प्रकृति भी गमगीन सी है,कुसुम शाखों से झर रहे हैं,
झुक गया है राष्ट्र ध्वज,अंतिम नमन को कह गए हैं।
शौर्यता की अमर गाथा,गाएंगी सदियां युगों तक,
भारती के लाल जो अद्भुत कहानी गढ़ गए हैं।
शब्द कविता अँजुरी में भावना बनकर भरे हैं,
श्रद्धांजलि उनको समर्पित,बलि की वेदी जो चढ़ गए हैं।
इतिहास साक्षी बन कहेगा,त्याग की गाथा निरन्तर,
अनुकरण होता रहेगा,प्रेरणा जो बन गए हैं।
मांग का लालित्य बिलखा,रो पड़ी सब राखियां हैं,
लोरियां क्रंदन में डूबी,बाजू भाई के कट गए हैं।
गाँव रोता,होता गर्वित, गाँव का बेटा गया है,
देश की माटी की खातिर,उत्सर्ग अपना कर गए हैं।
                                     जयहिन्द,वन्दे मातरम
                       रचनाकार--कुसुम सिंह 'अविचल'
मो०8318972712        1145-एम०आई०जी०(प्लॉट)
      9335723876        रतनलाल नगर    
                                    कानपुर-208022(उ०प्र०)


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