प्रखर दीक्षित

दानवता  जब सिर चढ़कर बोले।
निर्ममता जब भय के पट खोले ।।
तब स्वाभिमान हित शिव नर्तन,
विद्वेष विखंडित क्रूरता भय डोले।।


प्रखर दीक्षित


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...