प्रखर दीक्षित
फर्रु
मुक्तिका द्वय
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आंगन सी तुलसी
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रक्तिम माँग सुहावन पावन, हों प्रणयी खन निर्द्वंद प्रिये।
रोरी चंदनमय वपु आभा, तुम पूनौ का शुभ चंद प्रिये।।
रोम रोम सुरभित मद सुभगे, नखशिख भरण महावर रोचक,
आरोह वयस का अल्हड़ झोंका, तुम प्रणयन का मकरंद प्रिये ।।
मिला ताल से ताल माधुरी, बनो वारुणी गीत प्रिये।
संग सुगंधा अमृत बेला, बिछुड़न में विरही भीत प्रिये।।
तुम आंगन की तुलसी पावन, सम्पूरक जीवन की अनघा,
सप्तपदी की शपथ प्रखर शुभ, तुम्हीं अघोषित जीत प्रिये।।
प्रखर दीक्षित
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