गीत
गीत
_आज फिर........_
आज फिर देर थी, वो रूठी लगी।
मीठे ताने सुने, वो अनूठी लगी।
_आज फिर........_
थी शरद रात पूनम, चंद्रमा नॉन खिला।
मौन था जब मुखर, चैन दिल को मिला ।।
होंठ कंपन बढ़ा, सुर्ख रंग भी चढ़ा,
बाद बरसों के वो, नव वधूटी लगी।।
_आज फिर........_
कभी जेठ तपती कभी मधुमय अमिय।
कभी हमदम बने, कभी प्रेमिल सा पिय।।
वो संवारे सदा, पूर्ण करती वदा,
प्रेम प्रस्ताव पाकर अनूठी लगी।।
_आज फिर........_
वो सहारा सलाहकार साथी परम।
प्राण प्रण से निभाती गृहस्थी धरम।।
कोई कुछ भी कहे, फूल कांटे सहे,
तिय समर्पण में दुनियाँ झूठी लगी ।।
_आज फिर........_
बन के पूरक रहे कट गया यूँ सफर।
मन मयूरा सुहाना वो तारे डगर।।
कभी मैंने कहा, कभी उसने कहा।
कभी नमकीन प्रेयसी मीठी लगी।।
_आज फिर........_
*_प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*_
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