प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबा
कुछ मुक्तक
सुनयने सौम्य छवि मनहर भव्यता ईश का वंदन है।
ललक श्यामल मुरारी की झलक राधा का चंदन है।।
भवानी माँ का ताप तुममें वत्सला मूर्त ममता की,
कभी प्रस्तर कभी सरिता समर्पित भाव तनमन मीरा के ज़हर में तुम रमते तुलसी के राम तुम्हीं भगवन है।।
शबरी के बदरी के रस में अर्जुन के गीता ज्ञान सघन।।
गोपाल सूर के पद पद में द्रौपदी की साडी बने तुम्हीं, कान्हाँ राधा के बनवारी जय जयति जयति श्री नारायन।।
रे! तेरी बंशी हमें बैरन सतावै रात दिन मोहन।
करै व्याकुल चैन हर लै ठगो सो हाय री! तनमन।।
टेढो तू नज़र टेढी तू छलिया और बाजीगर,
तेरी छवि श्याम जियरा में बसे हो नैन में खनखन।।
जय श्री कृष्णा
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=रहे तू कान्हाँ अंग संग में तेरी नज़रें इनायत हों।
तेरी मोहन छवि मोहक दर्शन की रवायत हो।।
तू ही सृष्टि तू ही दृष्टि तुम्हीं जीवन का सरमाया,
दिया तूने झोली भर प्रखर न और कवायत हो।।
: जो कभी बेचैन करते थे वही अब चैन का कारण।
सजल नैना तकें राहें पात्यव्रत सत किया धारण।।
तुम्हीं सौभाग्य का कारक कंगन की खनक तुमसे
तुम्हारा साथ पिय संबल तो मैं जीतूँ जगत के रण।
*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*
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