प्रखर दीक्षित* *फर्रुखाबाद

पंच मुक्तिका


दर्द को कर दवा
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व्यर्थ का बैर पाले क्यों उलझा खड़ा।
जो आया यहाँ, उसे जाना पड़ा।।
व्यर्थ का रोब ये व्यर्थ की दास्तां,
आयी संकट घड़ी , कौन होता खड़ा ।।


सांस दो सांस जीवन, संभालो इसे ।
द्रोह आवेश गंदला, निकालो इसे।।
न गया साथ कुछ, तू लाया था क्या,
वक्त पाशा अमोलक उछालो इसे ।।


वक्त चूके अगर तो फिर पछताओगे ।
गर निराशा जहन तो पिछड़ जाओगे।।
जिंदगी चार दिन की पुरुषारथ करो,
प्रखर कर लो जतन, तो निखर जाओगे ।।


न हमारा है कुछ, जग तुम्हारा नहीं।
करूँ सिद्धान्त खारिज गवारा नहीं ।।
हम तुम्हें रास आऐं , न आऐं प्रखर,
सत्य मारग से मेरा , किनारा नहीं।।


कर्म करिए  जहन  , सदवृत्ती रहे।
पाक दामन रखें नहीं मंदा* कहें ।।
आचरण हो सहज, मान सम्मान दें,
दर्द को कर दवा, कष्ट विपदा सहें।।


ज्ञान विज्ञान हो , और अनुभूतियाँ।
सफल साकार हो, वेद की सूक्तियाँ।।
शिष्टता दिव्यता प्रखर परहित जिऐं,
धैर्य का हो वरण, नाश कमजोरियाँ।।


बांसुरी सी बजे जिंदगी मधुरमय।
भाव निस्पृह सदा पास हो न अनय।।
सत्य को जानकर झूठ को छानकर,
क्रोध हिंसा तजें प्रखर होगी विजय।।


*मंदा= निकिष्ट


*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*


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